मियां कुसुरू गांव में लगने वाले मोहर्रम मेले का क्या है इतिहास ?


संत कबीर नगर (बेलहर कला)-  जिले के विकास खंड बेलहर कला क्षेत्र के ग्राम मियां कुसुरू में लगने वाले मोहर्रम मेले का इतिहास काफी पुराना है । हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ताजिए के जुलूस के साथ मियां कुसुरू मेलें में पहुंचे जहां पर वे लोग फतियहा पढ़कर ताजिया को कर्बले में दफन किया । मोहर्रम मेले का इतिहास खंगालने के लिए मीडिया की टीम जब मियां कुसुरू गांव पहुंची तो वहां के बुजुर्गों ने बताया कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले जब हमारा गांव आबाद हुआ उसी दौरान गांव में सैयद शाह गुलाम हजरत साहब का आगमन हुआ । सैयद शाह गुलाम हजरत साहब इमान के इतने पक्के थे कि अपने जुबान से जो भी बोल देते वह सत्य हो जाता । बुजुर्गों ने बताया कि गांव में एक व्यक्ति लकड़ी का घर बना रहा था, घर में लगने वाला लकड़ी जिसको "धरन" कहते हैं वह छोटा पड़ गया तो वह व्यक्ति चिंता में पड़ गया। उसकी व्यथा देख सैयद शाह गुलाम हजरत जी ने उस सूखी लकड़ी को बड़ा कर दिया जिससे उसका घर बड़े ही आसानी से बन गया ।


उनके इस कारनामे की चर्चा पूरे क्षेत्र में फैल गई और लोग उन्हें अपना मसीहा तथा गुरु मानने लगे । कुछ समय बाद उनके यहां जनता के लिए दरबार लगने लगा जहां पर सभी फरियादियों को इंसाफ मिलने लगा । जहां कहीं से भी चोरी-डकैती आदि घटनाओं का खुलासा करवाना होता तो लोग उनके चौखट पर आकर कसम खाते थे, जो अपराधी होता था वह अपना गुनाह कबूल करने के बजाय अगर झूठ बोलता था तो वह 40 कदम जाने से पहले ही अंधा, लूला-लंगड़ा या फिर मर जाता था। उनके इस कारनामे को देख लोग उन्हें पैगंबर (देवता) की तरह मानने लगे । तभी से लोग उन्हीं के परिक्षेत्र में मोहर्रम का मेला लगवाना शुरू कर दिया । तब से लेकर आज तक मियां कुसुरू गांव में मोहर्रम का मेला लगता चला आ रहा है, जिसके क्रम में उन्हीं के वंशज सैयद मोहम्मद दानिश (ग्राम प्रधान कुसुरु कला) के अगुवाई में इस वर्ष भी बड़े ही धूम-धाम के साथ दर्जनों गांव के ताजियादारों ने जुलूस निकाला तथा ढोल-नगाड़े के साथ सभी लोग मियां कुसुरू गांव में स्थित सैयद शाह गुलाम हजरत के परिक्षेत्र में पहुंचे । जहां पर भव्य मेला लगा हुआ था मेलें में तरह-तरह के सामान मील रहे थे, बच्चे, महिलाएं तथा अन्य लोगों ने मेलें में खूब इंजॉय किया । तत्पश्चात ताजियादारों ने एक साथ फतियहा पढ़कर ताजिये को कर्बले में दफ़न किया । इस दौरान मुख्य रूप से सैयद अली हुसैन, सैयद अनवर अहमद, सैयद परवेज अहमद, मास्टर अब्बास अली, मोहम्मद साजिद, मोहम्मद उमर अंसारी सहित दर्जनों लोग मौजूद रहे ।



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